कांडी दर्रे की एक छोटी सी शाम की हाईक (2230m)
अगर आप 2019 के बाद कभी चंडीगढ़ से मनाली की ओर गए हैं तो आप ने मण्डी से बजौरा वाली रोड निश्चित ली होगी, चूंकि नेशनल हाईवे पर टनल और four laning construction का काम चल रहा है। इस detour रास्ते पे सबसे ऊंचा point hai कांडी पास, अथवा कांडी दर्रा। दर्रे पर बसा है कांडी गाँव। यह गांव जितना ऊंचा है उतना ही सुंदर भी है। एक ओर बुरांश के लाल फूलों से लदे पेड़ तो दूसरी ओर कुल्लू घाटी को surround करते बर्फीले पर्वत। कांडी दर्रा मंडी और कुल्लू घाटियों को अलग करता है। यहीं आज शाम की हाईक के लिए गए।
क़ैसर और मैं आईआईटी मंडी के दक्षिण कैंपस, जो कमांद गांव के निकट स्थित है, से दोपहर सवा तीन बजे अपनी प्रिय मारुति जिप्सी में निकले। मैं कई दिनों से इसमें लगे Yokohama के नए टायर की टेस्टिंग करना चाहता था। आज वो भी हो जायेगी, ये सोच कर आगे बढ़ चलें। कुछ 45 मिनट लगे कांडी तक पहुँचने में। पहले 14km तो मक्खन जैसी रोड थी, और अंत के 6km बस काम चलाऊ रोड ही थी । गाड़ी दर्रे पर park करी, हैंड ब्रेक और गियर दोनों डाल दियें और टायर के सामने पत्थर भी रख दिये ताकि ढलान पर खड़ी गाड़ी सुरक्षित रहे।
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| कांडी पास पर parked हमारी मारुति जिप्सी |
हाईक कुछ 1.5 घंटे की plan की थी तो 250ml पानी पेट में ही भर लिया, कोई बैग नहीं लिया। अपने-अपने हाइकिंग पोल उठाए, डाउन जैकेट पहनी और हाइकिंग जूतों में दक्षिण दिशा की ओर ऊपर चढ़ने लगे। ध्यान रक्खा की कच्ची सड़क न ले ridge पर चढ़ें। हवा तेज़ थी तो neck tube, जो एक स्कार्फ की तरह होता है, पहन लिया था। हवा से तापमान कम प्रतीत होता है, जिस से बीमार होने का खतरा रहता है। आज का तापमान 10 डिग्री C था पर प्रतीत 5 डिग्री C से कम हो रहा था। सर की टोपी तो मैं हर मौसम में पहने रहता हूँ।
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| कुल्लू के पहाड़ कांडी दर्रे से
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रास्ता तो हमारा जाना पहचाना था, पर कुछ साल पहले Alltrails ऐप पर रास्ता रिकॉर्ड करने की आदत लग गई, तो आज भी रिकॉर्डिंग चालू कर दी। इस से GPS सिग्नल द्वारा पूरा रास्ता रिकॉर्ड हो जाता है। Background में टोपोग्राफिक मैप भी दिखता है। अगर रास्ता भटक जाएं तो अपना पुराना रस्ता retrace कर लें। एक कॉन्फिडेंस सा रहता है। फिर बाद में रिकॉर्डिंग देखने का मज़ा अलग और अगर कोई दोस्त मित्र जाना चाहता हो तो उस के साथ share भी कर सकते हैं। अपनी position देख आस पास के पहाड़ भी पहचाने जा सकते हैं। सही मायने में टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल करते हैं हम, आईआईटी के टीचर जो ठहरे!
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Alltrails ऐप पर रास्ते का एक सारांश। हरा बिंदु शुरुआत और काला बिंदु रास्ते का अंत प्रदर्शित करता है। नीचे ऊंचाई का सारांश भी है।
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शुरू में पगडण्डी एक तीव्र चढ़ाई से होकर ऊपर बढ़ती है। चूँकि लोग इस रस्ते से जाते हैं तो रास्ता मिलना मुश्किल नहीं था। जैसे-जैसे सड़क छोड़ ऊपर चले तो मिजाज़ खुश होने लगा। सुन्दर पेड़ व झाड़ियों पर magpie और विभिन्न दूसरे पक्षी दिखने लगे। पीछे उत्तर दिशा में सड़क की दूसरी ओर एक शांत दृश्य जिसमें एक खूबसूरत घर और मंदिर दिखा जिसे मैंने अपने फ़ोन के कैमरे में झट से कैद कर लिया। चढ़ाई तीखी होने के कारण धीरे ही आगे बढ़ रहे थे। कुछ ही कदम दूर hydrology डिपार्टमेंट के कुछ सेंसर मिलते हैं जो बारिश, हवा और अन्य meteorological parameter मापने के प्रयोग में लाए जाते हैं।
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उत्तर दिशा में सड़क के पार एक घर और मंदिर
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अब रास्ता समतल होने लगा और देखते ही देखते खुला मैदान आ गया। यहाँ पर तो मन प्रसन्न हो जाता है। इस पहले मैदान, जिसे मैं ‘पहला बुग्याल’ कहूंगा, से खुला दृश्य दूर-दूर के पहाड़ों के दर्शन करवा देता है। बुग्याल यानी meadow जो खुली ढाल को दर्शाता है जिस पर ताज़ी हरी घाँस मिलती है। ऐसे बुग्याल स्विट्जरलैंड में भी पाए जाते हैं। आप चाहें तो अब से स्विट्जरलैंड को ‘the कांडी of Europe’ भी कह सकते हैं। पश्चिम दिशा में मंडी की कई पर्वत श्रृंखलाओं के साक्षात्कार होते हैं। यहाँ बस बैठ गए कुछ मिनटों के लिए। हवा और ठंड का मानो पता ही नहीं चल रहा था। बस पश्चिम दिशा में देखते रहें और खो से गए कुछ पलों के लिए। होश आया तो एक छोटा सा तालाब भी दिखा जिसने नज़ारे पे चार चाँद लगा दिए। पीछे उत्तरी चोटियाँ अब उजागर हो उठी थीं। सामने ही एक छोटा सा शिखर भी दिखा जिसे मैंने वापसी में चढ़ने का mental नोट बना लिया। जैसे ही हम आगे चलना शुरू किए तो नोटिस किया कि दक्षिण दिशा में चोटियों पर बर्फ थी। ये पहाड़ियां North facing थी तो जायज़ है बर्फ रहेगी क्योंकि सर्दियों में सूरज दक्षिण को झुक जाता है। इसी वजह से हमेशा पर्वतारोही North face को ही प्रधानता देते हैं जहां बर्फ कड़ी रहती है।
जब हम नज़ारों में खोए थे तभी धर्मपत्नी ने याद कराया की हम हाइकिंग पर आए हैं, केवल पर्वत दर्शन करने नहीं। याद आते ही आगे को चल पड़े। रस्ता दक्षिण से अब दक्षिण-पूर्व की तरफ बढ़ने लगा। मैंने अपना हाइकिंग पोल trouser बेल्ट लूप में डाला हुआ था। ऊपर चलते समय मैं quadriceps को पूरे तरीके से engage करना prefer करता हूं। इससे मेरे quadriceps मज़बूत और घुटने प्रसन्न रहते हैं। अब बुरांश के पेड़ दिखने लगे जिन पर चमकदार लाल फूल लगे थे। बर्फीले पहाड़ भी करीब आ गए। थकान का पता ही नहीं चल रहा था जबकि हम 100m altitude gain कर चुके थे।
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